पहले तेजस्वी से मुलाकात फिर विशेष दर्जे की मांग, मुख्यमंत्री नीतीश के इरादे क्या हैं
पटना : कुछ दिनों पहले ही संसद में केंद्र सरकार का बजट पेश हुआ था. नीतीश ने बजट से पहले या बाद में बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की कोई चर्चा ही नहीं की. लेकिन आज जब भुवनेश्वर में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक हुई तो बिहार के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग उठा दी. अब सवाल ये उठ रहा है कि नीतीश कुमार चाहते क्या हैं.
नीतीश ने बजायी बेवक्त की शहनाई
ओडिसा की राजधानी भुवनेश्वर में आज पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक हुई. इसमें बिहार के अलावा बंगाल, ओडिसा और झारखंड के मुख्यमंत्री शामिल हुए. इस तरह की बैठक पड़ोसी राज्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने और उनके बीच के आपसी मसलों को हल करने के लिए आयोजित किये जाते हैं. बैठक केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से आयोजित की जाती है. लिहाजा आज की बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे.
हैरानी की बात ये है कि आपसी समन्वय स्थापित करने की बैठक में नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठा दी. बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मौजूद थे जिनके पास किसी राज्य को वित्तीय मदद देने का अधिकार नहीं होता. लिहाजा नीतीश की मांग पर सवाल उठने लगे हैं. सवाल इसलिए भी गहरे हो रहे हैं क्योंकि पिछले तीन-चार दिनों में बिहार में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं उससे आने वाले दिनों में नीतीश के इरादों पर खूब चर्चा हो रही है.
नीतीश के इरादे क्या हैं
पिछले तीन-चार दिनों के घटनाक्रम से ये सवाल उठना लाजिमी है. नीतीश कुमार आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव से दो दफे मिल चुके हैं. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सहमति से बिहार विधानसभा से NRC और NPR के नये प्रारूप के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया जा चुका है. कहा ये जा रहा है कि इस प्रस्ताव की भनक भी बीजेपी को नहीं थी. वहीं नीतीश ने बिहार विधानसभा से जातीय जनगणना का प्रस्ताव भी पारित कराया है.
नीतीश की प्रेशर पॉलिटिक्स
सियासी जानकार पूछ रहे हैं कि नीतीश कुमार को अगर बिहार के विशेष दर्जे की फिक्र थी तो केंद्र सरकार के आम बजट से पहले इसका जिक्र क्यों नहीं किया? केंद्रीय बजट में बिहार को किसी किस्म की विशेष सहायता का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन नीतीश ने बजट के बाद की प्रतिक्रिया में भी इसका विरोध नहीं किया.
अचानक से ये सारा घटनाक्रम क्यों
जानकार बता रहे हैं कि ये नीतीश कुमार की प्रेशर पॉलिटिक्स है. बीजेपी ने बिहार में नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात तो कह दी है लेकिन अब तक सीट शेयरिंग पर कोई चर्चा नहीं की है. ये जगजाहिर है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव की तर्ज पर सीट शेयरिंग करना चाहती है. यानि बीजेपी-जेडीयू में आधी-आधी सीटों का बंटवारा. लेकिन नीतीश को ये फार्मूला हरगिज मंजूर नहीं है.
नीतीश कुमार समझ रहे हैं कि झारखंड और दिल्ली में हार और देश भर में CAA के खिलाफ आंदोलन से बीजेपी भारी दबाव में है. ये माकूल वक्त है जब उस पर दबाव डालकर अपने मन मुताबिक सीट शेयरिंग करा लिया जाये. लिहाजा वे ताबड़तोड़ वार कर रहे हैं. हालांकि नीतीश ये भी जानते हैं कि बीजेपी से नाता तोड़ कर आरजेडी के साथ जाना उनके लिए बेहद मुश्किल होगा. लिहाजा रहना तो बीजेपी के साथ ही है लेकिन अपनी शर्तों पर.