मानव इतिहास की सबसे बड़ी भूल, जिससे करोड़ों लोगों की जान चली गयी

आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे एक ऐसी भयानक ऐतिहासिक इंसानी गलती की जिसकी वजह से ढाई करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। मनुष्य के द्वारा अनजाने में प्राकृतिक चक्कर से छेड़छाड़ कितनी हानिकारक हो सकती है इसका नतीजा हमें 1958 में चीन में देखने को मिला था। दोस्तों हम बात कर रहे हैं एक ऐसे अभियान के बारे में जिसका निर्णय बेहद ही गलत साबित हुआ और अंततः तबाही का कारण बना था। इस अभियान का नाम था “द ग्रेट स्पैरो कैंपेन” (The Great Sparrow Campaign) जिसे मुख्य रूप से 4 किट अभियान के नाम से जाना जाता है।

इस अभियान की शुरुआत चाइना में 1958 में की गई थी। यह वही वर्ष था जब चाइना के “पीपल्स रिपब्लिक” (People’s Republic of China) के संस्थापक माओ जे़डोंग (Mao Zedong) ने फैसला किया कि चाइना की अर्थव्यवस्था जो की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था थी को उन्नत करके औद्योगिक और आधुनिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित किया जाए। माओ जे़डोंग जिन्हें माओ सेतुन के नाम से भी जाना जाता था।

उनके बारे में आपको बता दें कि उन्हें चाइना में एक महान क्रांतिकारी, राजनीतिक, रणनीतिकार, सैनिक एवं देश रक्षक के रूप में याद किया जाता है पर दोस्तों गलतियां तो सभी से हो जाती है चाहे वह कितना भी बड़ा व्यक्तित्व या हस्ती क्यों ना हो। माओ जे़डोंग चाइना को विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना चाहते थे।

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उस समय “ग्रेट ब्रिटेन” (Great Britain) की अर्थव्यवस्था सबसे उन्नत थी और उसके बाद अमेरिका का नंबर आता था। माओ और उसके प्रतिनिधियों ने संकल्प लिया की अब से यानि 1958 से शुरू करके आने वाले 15 सालों के भीतर हम अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पछाड़कर यूके (UK) के अर्थव्यवस्था के बराबरी कर लेंगे और सब कुछ सही रहा तो चीन यूके को भी पछाड़ देगा।

इस संकल्प के साथ चीन में एक बहुत बड़े आंदोलन की परिकल्पना की गई। जिसे “द ग्रेट लीप फॉरवर्ड” ( The Great Leap Forward) का नाम दिया गया। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “आगे की ओर एक महान छलांग” परंतु आने वाले समय को कुछ और ही मंजूर था। और यह द ग्रेट लीप फॉरवर्ड आंदोलन चाइना के इतिहास का बहुत बड़ा काला अध्याय साबित हुआ और करोड़ों लोगों को भूख से बिलखते हुए दम तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

दरअसल माओ का मानना था कि चीन में परिवर्तन का राज उसकी तेजी से बढ़ती आबादी में ही छिपा है और यदि इस बढ़ती आबादी को व्यवस्थित तरीके से विकसित किया जाए तो सामाजिक और आर्थिक बदलाव देखे जा सकते हैं। इसके अलावा फसलों को आय का अच्छा स्रोत बनाया जा सकता है जिसके लिए कृषि भूमि पर अधिक उत्पादन की आवश्यकता थी और उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई सरकारी नीतियों को जमीनी तौर पर लागू करने का फैसला किया गया और शुरू किया गया एक विचित्र अभियान जो आखिरकार करोड़ों लोगों की मौत का कारण बना।

इस अभियान का नाम था “चार किट अभियान” और यह चार किट थे गौरैया, चूहे, मक्खी और मच्छर माओ ने कहा कि चूहे, मच्छर और मक्खियाँ सभी मानव के दुश्मन हैं और इन्हें मार देना चाहिए। उनका देश चिड़िया यानि गौरैया और ये बाकी के कीटों के बिना भी रह सकता है।

चीनी वैज्ञानिकों ने गणना की थी कि प्रत्येक गौरैया हर साल 4.5 किलोग्राम अनाज खा जाती है और फलों को भी नुकसान पहुंचाती है अगर गौरैया को मार दिया जाए तो जनता के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ जाएगी और बढे हुए उत्पादन को निर्यात किया जा सकता है। माओ ने इसी समस्या का निराकरण करने के लिए ग्रेट स्पैरो अभियान शुरू किया। परंतु यह अभियान नहीं युद्ध था उन चार कीटों के खिलाफ चारों कीटों को खत्म करने के लिए आम लोगों से लेकर सेना तक का भी इस्तेमाल किया गया और सबसे ज्यादा फोकस किया गया बेचारी मासूम चिड़ियों पर।

इस अभियान का व्यापक प्रचार और प्रसार किया गया। चीनी नागरिकों को गौरैयाओं को मिटाने के लिए भारी तादाद में जुटाया गया गौरैया विरोधी सेना बनाई गई।विद्यालयों, कारखानों, बाजारों में गौरैया मारने की मुहिम चलाई गई। जनता में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गए सिर्फ एक मासूम चिड़िया को मारने के लिए। “गौरैया को मिटाना है और चीन को चमकाना है” यह इस अभियान का नारा भी था। चीनी लोग गौरैया को आतंकित करने के लिए उन्हें जमीन पर उतरने से रोकने के लिए ढोल पीटते हुए उनके पीछा करते थे।

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ढोल की आवाज से डरी हुई यह मासूम चिड़िया जमीन पर नहीं उतरती थी और लगातार उड़ती रहती थी चीनी लोग तब तक ढोलक बजाते रहते थे जब तक गौरैया उड़ते उड़ते थक कर गिर ना जाए और गिरते ही उसे मार दिया जाता था। चीनी लोगों ने गौरैयाओं के घोसले तोड़ दिए अंडे नष्ट कर दिए और यह अभियान इतने तेज युद्ध स्तर पर शुरू किया गया कि पहले ही दिन करीब दो लाख से ज्यादा गौरैयाओं को मार गिराया गया।

चीनी लोग खुशी में मरी हुई गौरैयाओं का माला बनाते थे चीनी जनता में इस मासूम चिड़िया को जड़ से खत्म कर देने का एक पागलपन की हद तक जुनून सवार था और इसके पीछे का कारण था कि चीन की अर्थव्यवस्था को अमेरिका से भी आगे लेकर जाना है लगातार इस तरह के प्रयासों के परिणाम स्वरूप 2 साल के अंदर ही चीन में गौरैया की प्रजाति लगभग लुप्त हो गई लेकिन चीन के लोग सिर्फ यही नहीं रुके अभियान के इस पागलपन में लोगों ने गौरैया के अलावा अन्य पक्षियों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया। जिससे पूरे चीन में लगभग सभी पक्षियों की प्रजाति लुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई।

भीषण अकाल का प्रभाव

इस ग्रेट स्पैरो अभियान को तो 1960 तक सफलता मिल गई थी परंतु एक महाकाल समस्या धीरे-धीरे चीन में आ रहे थी और वह थी भयंकर पर्यावरण असंतुलन की।गौरैया जैसी कोई भी चिड़िया केवल अनाज है या बीज ही नहीं खाती गौरैया कीड़े मकोड़े भी खाती है जिससे कीड़े मकोड़ों की संख्या और नियंत्रण में रहती है और चुकी अब उन कीड़े मकोड़ों की आने वाले चिड़ियों को चीनी लोगों ने मार डाला था तो अब ऐसे में सभी कीड़े मकोड़ों और छोटे कीटों की आबादी में एक ऐसा उफान सा आया जो संभालने का नाम ही नहीं ले रहा था सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई टिड्डियों की संख्या में पूरे चीन में टिड्डी दल की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। टिड्डी दल झुंड के झुंड में आते और चंद घंटों में हजारों हेक्टेयर में फैली फसलों को चट कर जाते टिड्डी दल का ऐसा भयंकर हमला चीन वासियों ने पहले कभी नहीं देखा था।

 

टिड्डी दल रातों-रात किसी गांव पर हमला करते और पूरे गांव की फसल को एक ही रात में तबाह करके अगले गांव की ओर प्रस्थान कर देते। वही चीनी वासी बड़े ही बेबस खड़े होकर यह सब देखते ही रह जाते करोड़ों की संख्या में एक साथ हमला करते इन टिड्डी दलों को काबू करने में कोई भी तरीका कारगर साबित नहीं हो रहा था। टिड्डी दलों के आक्रमण और फसलों को खाने वाले अन्य कीट पतंगों के हमले के कारण चीन में पैदावार बुरी तरह से प्रभावित हुई।

इसको रोकने के लिए लगातार कीटनाशक का छिड़काव भी और चीनी सरकार के द्वारा अपनाये गए अन्य उपाय भी इन कीटों के बढ़ती संख्या के प्रति बेअसर साबित हुए उल्टा नए-नए कीटनाशकों के प्रयोग ने फसलों को और भी ज्यादा सड़ा दिया था। देखते ही देखते चाइना में अकाल की स्थिति आ गई। जनता अन्न को तरसने लगी और पूरे चीन में भुखमरी के हालात हो गए।

यह पता लगने पर की गौरैया और अन्य पक्षी कीड़े मकोड़ों को खाकर पर्यावरण संतुलित रखने में अपना योगदान देते हैं माओ ने 1960 में गोरिया मारने का अभियान स्थगित कर दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पर्यावरण असंतुलन अपना काम कर चुका था अकाल के कारण करोड़ों लोग खाने को तरस तरस कर मर गए।

1958 से 1961 के 3 सालों में चीन ने 30 मिलियन यानी लगभग तीन करोड़ लोग मारे गए थे बेशक चीनी सरकार ने मरने वालों की आधिकारिक संख्या 15 मिलियन ही बताई थी लेकिन कुछ विद्वानों का अनुमान था कि भूख से मरने वालों की संख्या 45 मिलियन यानी की 4.5 करोड़ तक थी इस घटना को चाइना के इतिहास में महान अकाल के नाम से जाना जाता है चीनी पत्रकार यंग जिसेन 1940 में पैदा हुए थे उन्होंने चाइना के इस अकाल को अपनी पुस्तक टोम्ब्स्टोन (Tombstone) में अच्छे तरह से कवर किया है और उनके मुताबिक 36 मिलियन लोग मारे गए थे।

यह पुस्तक आज चाइना में प्रतिबंधित है महान अकाल के रूप में याद रखे जाने वाला यह विषय चीन में अब 60 वर्षों के बाद भी वर्जित बना हुआ है। इतना ही नहीं चीन के आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि यह एक प्राकृतिक आपदा थी न कि सरकारी कुप्रबंध और गलत नीतियों का परिणाम। जबकि वास्तव में यह घटना एक भयंकर मानवीय भूल थी जिसकी वजह से करोड़ों लोग भूख की वजह से मारे गए थे।